Anand Sahib in Hindi - आनंद साहिब हिन्दी गुरबानी -->

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Anand Sahib in Hindi - आनंद साहिब हिन्दी गुरबानी

Anand Sahib in Hindi - आनंद साहिब हिन्दी गुरबानी


आनंद साहिब सिख धर्म में भजनों का एक संग्रह है, जिसे सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास द्वारा रामकली राग में लिखा गया है। यह गुरु ग्रंथ साहिब के पृष्ठ 917 से 922 पर प्रकट होता है। आनंद शब्द का अर्थ है पूर्ण सुख। आनंद साहिब नितनेम (दैनिक प्रार्थना) का एक हिस्सा है जिसे अमृतधारी सिख भोर से पहले पढ़ते हैं। घटना की प्रकृति के बावजूद सिखों के सभी धार्मिक समारोहों में आनंद साहिब का जाप किया जाता है। आनंद साहिब के दो संस्करण हैं; एक जो 40 पौड़ी का विस्तार करता है और एक छोटा संस्करण जिसे अक्सर छोटा आनंद साहिब कहा जाता है, जो पहले 5 पौड़ी का विस्तार करता है और फिर अंतिम पौड़ी तक जाता है। आनंद साहिब का यह छोटा संस्करण आमतौर पर अरदास से पहले समापन समारोह में सुनाया जाता है। रेहरा के अंत में छोटा आनंद साहिब शामिल है।


Anand Sahib in Hindi - आनंद साहिब हिन्दी गुरबानी
Anand Sahib in Hindi

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रामकली महला ३ अनंदु


ੴ सतिगुर प्रसादि ॥


अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥

सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥

राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥

सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥

कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥


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ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥

हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥

अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥

सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥

कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥


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साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥

घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥

सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥

नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥

कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥


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साचा नामु मेरा आधारो ॥

साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥

करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥

सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥

कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥

साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥


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वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥

घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥

पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥

धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥

कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥


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साची लिवै बिनु देह निमाणी ॥

देह निमाणी लिवै बाझहु किआ करे वेचारीआ ॥

तुधु बाझु समरथ कोइ नाही क्रिपा करि बनवारीआ ॥

एस नउ होरु थाउ नाही सबदि लागि सवारीआ ॥

कहै नानकु लिवै बाझहु किआ करे वेचारीआ ॥६॥


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आनंदु आनंदु सभु को कहै आनंदु गुरू ते जाणिआ ॥

जाणिआ आनंदु सदा गुर ते क्रिपा करे पिआरिआ ॥

करि किरपा किलविख कटे गिआन अंजनु सारिआ ॥

अंदरहु जिन का मोहु तुटा तिन का सबदु सचै सवारिआ ॥

कहै नानकु एहु अनंदु है आनंदु गुर ते जाणिआ ॥७॥


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बाबा जिसु तू देहि सोई जनु पावै ॥

पावै त सो जनु देहि जिस नो होरि किआ करहि वेचारिआ ॥

इकि भरमि भूले फिरहि दह दिसि इकि नामि लागि सवारिआ ॥

गुर परसादी मनु भइआ निरमलु जिना भाणा भावए ॥

कहै नानकु जिसु देहि पिआरे सोई जनु पावए ॥८॥


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आवहु संत पिआरिहो अकथ की करह कहाणी ॥

करह कहाणी अकथ केरी कितु दुआरै पाईऐ ॥

तनु मनु धनु सभु सउपि गुर कउ हुकमि मंनिऐ पाईऐ ॥

हुकमु मंनिहु गुरू केरा गावहु सची बाणी ॥

कहै नानकु सुणहु संतहु कथिहु अकथ कहाणी ॥९॥


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ए मन चंचला चतुराई किनै न पाइआ ॥

चतुराई न पाइआ किनै तू सुणि मंन मेरिआ ॥

एह माइआ मोहणी जिनि एतु भरमि भुलाइआ ॥

माइआ त मोहणी तिनै कीती जिनि ठगउली पाईआ ॥

कुरबाणु कीता तिसै विटहु जिनि मोहु मीठा लाइआ ॥

कहै नानकु मन चंचल चतुराई किनै न पाइआ ॥१०॥


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ए मन पिआरिआ तू सदा सचु समाले ॥

एहु कुट्मबु तू जि देखदा चलै नाही तेरै नाले ॥

साथि तेरै चलै नाही तिसु नालि किउ चितु लाईऐ ॥

ऐसा कमु मूले न कीचै जितु अंति पछोताईऐ ॥

सतिगुरू का उपदेसु सुणि तू होवै तेरै नाले ॥

कहै नानकु मन पिआरे तू सदा सचु समाले ॥११॥


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अगम अगोचरा तेरा अंतु न पाइआ ॥

अंतो न पाइआ किनै तेरा आपणा आपु तू जाणहे ॥

जीअ जंत सभि खेलु तेरा किआ को आखि वखाणए ॥

आखहि त वेखहि सभु तूहै जिनि जगतु उपाइआ ॥

कहै नानकु तू सदा अगमु है तेरा अंतु न पाइआ ॥१२॥


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सुरि नर मुनि जन अम्रितु खोजदे सु अम्रितु गुर ते पाइआ ॥

पाइआ अम्रितु गुरि क्रिपा कीनी सचा मनि वसाइआ ॥

जीअ जंत सभि तुधु उपाए इकि वेखि परसणि आइआ ॥

लबु लोभु अहंकारु चूका सतिगुरू भला भाइआ ॥

कहै नानकु जिस नो आपि तुठा तिनि अम्रितु गुर ते पाइआ ॥१३॥


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भगता की चाल निराली ॥

चाला निराली भगताह केरी बिखम मारगि चलणा ॥

लबु लोभु अहंकारु तजि त्रिसना बहुतु नाही बोलणा ॥

खंनिअहु तिखी वालहु निकी एतु मारगि जाणा ॥

गुर परसादी जिनी आपु तजिआ हरि वासना समाणी ॥

कहै नानकु चाल भगता जुगहु जुगु निराली ॥१४॥


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जिउ तू चलाइहि तिव चलह सुआमी होरु किआ जाणा गुण तेरे ॥

जिव तू चलाइहि तिवै चलह जिना मारगि पावहे ॥

करि किरपा जिन नामि लाइहि सि हरि हरि सदा धिआवहे ॥

जिस नो कथा सुणाइहि आपणी सि गुरदुआरै सुखु पावहे ॥

कहै नानकु सचे साहिब जिउ भावै तिवै चलावहे ॥१५॥


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एहु सोहिला सबदु सुहावा ॥

सबदो सुहावा सदा सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥

एहु तिन कै मंनि वसिआ जिन धुरहु लिखिआ आइआ ॥

इकि फिरहि घनेरे करहि गला गली किनै न पाइआ ॥

कहै नानकु सबदु सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥१६॥


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पवितु होए से जना जिनी हरि धिआइआ ॥

हरि धिआइआ पवितु होए गुरमुखि जिनी धिआइआ ॥

पवितु माता पिता कुट्मब सहित सिउ पवितु संगति सबाईआ ॥

कहदे पवितु सुणदे पवितु से पवितु जिनी मंनि वसाइआ ॥

कहै नानकु से पवितु जिनी गुरमुखि हरि हरि धिआइआ ॥१७॥


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करमी सहजु न ऊपजै विणु सहजै सहसा न जाइ ॥

नह जाइ सहसा कितै संजमि रहे करम कमाए ॥

सहसै जीउ मलीणु है कितु संजमि धोता जाए ॥

मंनु धोवहु सबदि लागहु हरि सिउ रहहु चितु लाइ ॥

कहै नानकु गुर परसादी सहजु उपजै इहु सहसा इव जाइ ॥१८॥


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जीअहु मैले बाहरहु निरमल ॥

बाहरहु निरमल जीअहु त मैले तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥

एह तिसना वडा रोगु लगा मरणु मनहु विसारिआ ॥

वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ ॥

कहै नानकु जिन सचु तजिआ कूड़े लागे तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥१९॥


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जीअहु निरमल बाहरहु निरमल ॥

बाहरहु त निरमल जीअहु निरमल सतिगुर ते करणी कमाणी ॥

कूड़ की सोइ पहुचै नाही मनसा सचि समाणी ॥

जनमु रतनु जिनी खटिआ भले से वणजारे ॥

कहै नानकु जिन मंनु निरमलु सदा रहहि गुर नाले ॥२०॥


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जे को सिखु गुरू सेती सनमुखु होवै ॥

होवै त सनमुखु सिखु कोई जीअहु रहै गुर नाले ॥

गुर के चरन हिरदै धिआए अंतर आतमै समाले ॥

आपु छडि सदा रहै परणै गुर बिनु अवरु न जाणै कोए ॥

कहै नानकु सुणहु संतहु सो सिखु सनमुखु होए ॥२१॥


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जे को गुर ते वेमुखु होवै बिनु सतिगुर मुकति न पावै ॥

पावै मुकति न होर थै कोई पुछहु बिबेकीआ जाए ॥

अनेक जूनी भरमि आवै विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥

फिरि मुकति पाए लागि चरणी सतिगुरू सबदु सुणाए ॥

कहै नानकु वीचारि देखहु विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥२२॥


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आवहु सिख सतिगुरू के पिआरिहो गावहु सची बाणी ॥

बाणी त गावहु गुरू केरी बाणीआ सिरि बाणी ॥

जिन कउ नदरि करमु होवै हिरदै तिना समाणी ॥

पीवहु अम्रितु सदा रहहु हरि रंगि जपिहु सारिगपाणी ॥

कहै नानकु सदा गावहु एह सची बाणी ॥२३॥


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सतिगुरू बिना होर कची है बाणी ॥

बाणी त कची सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥

आखि वखाणी ॥कहदे कचे सुणदे कचे कची

हरि हरि नित करहि रसना कहिआ कछू न जाणी ॥

चितु जिन का हिरि लइआ माइआ बोलनि पए रवाणी ॥

कहै नानकु सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥२४॥


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गुर का सबदु रतंनु है हीरे जितु जड़ाउ ॥

सबदु रतनु जितु मंनु लागा एहु होआ समाउ ॥

सबद सेती मनु मिलिआ सचै लाइआ भाउ ॥

आपे हीरा रतनु आपे जिस नो देइ बुझाइ ॥

कहै नानकु सबदु रतनु है हीरा जितु जड़ाउ ॥२५॥


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सिव सकति आपि उपाइ कै करता आपे हुकमु वरताए ॥

हुकमु वरताए आपि वेखै गुरमुखि किसै बुझाए ॥

तोड़े बंधन होवै मुकतु सबदु मंनि वसाए ॥

गुरमुखि जिस नो आपि करे सु होवै एकस सिउ लिव लाए ॥

कहै नानकु आपि करता आपे हुकमु बुझाए ॥२६॥


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सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी ॥

ततै सार न जाणी गुरू बाझहु ततै सार न जाणी ॥

तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी ॥

गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अम्रित बाणी ॥

कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी ॥२७॥


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माता के उदर महि प्रतिपाल करे सो किउ मनहु विसारीऐ ॥

मनहु किउ विसारीऐ एवडु दाता जि अगनि महि आहारु पहुचावए ॥

ओस नो किहु पोहि न सकी जिस नउ आपणी लिव लावए ॥

आपणी लिव आपे लाए गुरमुखि सदा समालीऐ ॥

कहै नानकु एवडु दाता सो किउ मनहु विसारीऐ ॥२८॥


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जैसी अगनि उदर महि तैसी बाहरि माइआ ॥

माइआ अगनि सभ इको जेही करतै खेलु रचाइआ ॥

जा तिसु भाणा ता जमिआ परवारि भला भाइआ ॥

लिव छुड़की लगी त्रिसना माइआ अमरु वरताइआ ॥

एह माइआ जितु हरि विसरै मोहु उपजै भाउ दूजा लाइआ ॥

कहै नानकु गुर परसादी जिना लिव लागी तिनी विचे माइआ पाइआ ॥२९॥


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हरि आपि अमुलकु है मुलि न पाइआ जाइ ॥

मुलि न पाइआ जाइ किसै विटहु रहे लोक विललाइ ॥

ऐसा सतिगुरु जे मिलै तिस नो सिरु सउपीऐ विचहु आपु जाइ ॥

जिस दा जीउ तिसु मिलि रहै हरि वसै मनि आइ ॥

हरि आपि अमुलकु है भाग तिना के नानका जिन हरि पलै पाइ ॥३०॥


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हरि रासि मेरी मनु वणजारा ॥

हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ॥

हरि हरि नित जपिहु जीअहु लाहा खटिहु दिहाड़ी ॥

एहु धनु तिना मिलिआ जिन हरि आपे भाणा ॥

कहै नानकु हरि रासि मेरी मनु होआ वणजारा ॥३१॥


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ए रसना तू अन रसि राचि रही तेरी पिआस न जाइ ॥

पिआस न जाइ होरतु कितै जिचरु हरि रसु पलै न पाइ ॥

हरि रसु पाइ पलै पीऐ हरि रसु बहुड़ि न त्रिसना लागै आइ ॥

एहु हरि रसु करमी पाईऐ सतिगुरु मिलै जिसु आइ ॥

कहै नानकु होरि अन रस सभि वीसरे जा हरि वसै मनि आइ ॥३२॥


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ए सरीरा मेरिआ हरि तुम महि जोति रखी ता तू जग महि आइआ ॥

हरि जोति रखी तुधु विचि ता तू जग महि आइआ ॥

हरि आपे माता आपे पिता जिनि जीउ उपाइ जगतु दिखाइआ ॥

गुर परसादी बुझिआ ता चलतु होआ चलतु नदरी आइआ ॥

कहै नानकु स्रिसटि का मूलु रचिआ जोति राखी ता तू जग महि आइआ ॥३३॥


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मनि चाउ भइआ प्रभ आगमु सुणिआ ॥

हरि मंगलु गाउ सखी ग्रिहु मंदरु बणिआ ॥

हरि गाउ मंगलु नित सखीए सोगु दूखु न विआपए ॥

गुर चरन लागे दिन सभागे आपणा पिरु जापए ॥

अनहत बाणी गुर सबदि जाणी हरि नामु हरि रसु भोगो ॥

कहै नानकु प्रभु आपि मिलिआ करण कारण जोगो ॥३४॥


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ए सरीरा मेरिआ इसु जग महि आइ कै किआ तुधु करम कमाइआ ॥

कि करम कमाइआ तुधु सरीरा जा तू जग महि आइआ ॥

जिनि हरि तेरा रचनु रचिआ सो हरि मनि न वसाइआ ॥

गुर परसादी हरि मंनि वसिआ पूरबि लिखिआ पाइआ ॥

कहै नानकु एहु सरीरु परवाणु होआ जिनि सतिगुर सिउ चितु लाइआ ॥३५॥


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ए नेत्रहु मेरिहो हरि तुम महि जोति धरी हरि बिनु अवरु न देखहु कोई ॥

हरि बिनु अवरु न देखहु कोई नदरी हरि निहालिआ ॥

एहु विसु संसारु तुम देखदे एहु हरि का रूपु है हरि रूपु नदरी आइआ ॥

गुर परसादी बुझिआ जा वेखा हरि इकु है हरि बिनु अवरु न कोई ॥

कहै नानकु एहि नेत्र अंध से सतिगुरि मिलिऐ दिब द्रिसटि होई ॥३६॥


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ए स्रवणहु मेरिहो साचै सुनणै नो पठाए ॥

साचै सुनणै नो पठाए सरीरि लाए सुणहु सति बाणी ॥

जितु सुणी मनु तनु हरिआ होआ रसना रसि समाणी ॥

सचु अलख विडाणी ता की गति कही न जाए ॥

कहै नानकु अम्रित नामु सुणहु पवित्र होवहु साचै सुनणै नो पठाए ॥३७॥


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हरि जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥

वजाइआ वाजा पउण नउ दुआरे परगटु कीए दसवा गुपतु रखाइआ ॥

गुरदुआरै लाइ भावनी इकना दसवा दुआरु दिखाइआ ॥

तह अनेक रूप नाउ नव निधि तिस दा अंतु न जाई पाइआ ॥

कहै नानकु हरि पिआरै जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥३८॥


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एहु साचा सोहिला साचै घरि गावहु ॥

गावहु त सोहिला घरि साचै जिथै सदा सचु धिआवहे ॥

सचो धिआवहि जा तुधु भावहि गुरमुखि जिना बुझावहे ॥

इहु सचु सभना का खसमु है जिसु बखसे सो जनु पावहे ॥

कहै नानकु सचु सोहिला सचै घरि गावहे ॥३९॥


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अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥

पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥

दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥

संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥

सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥

बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥



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ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੩ ਅਨੰਦੁ

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥

ਅਨੰਦੁ ਭਇਆ ਮੇਰੀ ਮਾਏ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮੈ ਪਾਇਆ ॥ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤ ਪਾਇਆ ਸਹਜ ਸੇਤੀ ਮਨਿ ਵਜੀਆ ਵਾਧਾਈਆ ॥ ਰਾਗ ਰਤਨ ਪਰਵਾਰ ਪਰੀਆ ਸਬਦ ਗਾਵਣ ਆਈਆ ॥ ਸਬਦੋ ਤ ਗਾਵਹੁ ਹਰੀ ਕੇਰਾ ਮਨਿ ਜਿਨੀ ਵਸਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਅਨੰਦੁ ਹੋਆ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮੈ ਪਾਇਆ ॥੧॥

ਏ ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਤੂ ਸਦਾ ਰਹੁ ਹਰਿ ਨਾਲੇ ॥ ਹਰਿ ਨਾਲਿ ਰਹੁ ਤੂ ਮੰਨ ਮੇਰੇ ਦੂਖ ਸਭਿ ਵਿਸਾਰਣਾ ॥ ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਓਹੁ ਕਰੇ ਤੇਰਾ ਕਾਰਜ ਸਭਿ ਸਵਾਰਣਾ ॥ ਸਭਨਾ ਗਲਾ ਸਮਰਥੁ ਸੁਆਮੀ ਸੋ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਮੰਨ ਮੇਰੇ ਸਦਾ ਰਹੁ ਹਰਿ ਨਾਲੇ ॥੨॥

ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬਾ ਕਿਆ ਨਾਹੀ ਘਰਿ ਤੇਰੈ ॥ ਘਰਿ ਤ ਤੇਰੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਦੇਹਿ ਸੁ ਪਾਵਏ ॥ ਸਦਾ ਸਿਫਤਿ ਸਲਾਹ ਤੇਰੀ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਵਸਾਵਏ ॥ ਨਾਮੁ ਜਿਨ ਕੈ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਵਾਜੇ ਸਬਦ ਘਨੇਰੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਚੇ ਸਾਹਿਬ ਕਿਆ ਨਾਹੀ ਘਰਿ ਤੇਰੈ ॥੩॥

ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਮੇਰਾ ਆਧਾਰੋ ॥ ਸਾਚੁ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਮੇਰਾ ਜਿਨਿ ਭੁਖਾ ਸਭਿ ਗਵਾਈਆ ॥ ਕਰਿ ਸਾਂਤਿ ਸੁਖ ਮਨਿ ਆਇ ਵਸਿਆ ਜਿਨਿ ਇਛਾ ਸਭਿ ਪੁਜਾਈਆ ॥ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਣੁ ਕੀਤਾ ਗੁਰੂ ਵਿਟਹੁ ਜਿਸ ਦੀਆ ਏਹਿ ਵਡਿਆਈਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਹੁ ਸੰਤਹੁ ਸਬਦਿ ਧਰਹੁ ਪਿਆਰੋ ॥ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਮੇਰਾ ਆਧਾਰੋ ॥੪॥

ਵਾਜੇ ਪੰਚ ਸਬਦ ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਸਭਾਗੈ ॥ ਘਰਿ ਸਭਾਗੈ ਸਬਦ ਵਾਜੇ ਕਲਾ ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਧਾਰੀਆ ॥ ਪੰਚ ਦੂਤ ਤੁਧੁ ਵਸਿ ਕੀਤੇ ਕਾਲੁ ਕੰਟਕੁ ਮਾਰਿਆ ॥ ਧੁਰਿ ਕਰਮਿ ਪਾਇਆ ਤੁਧੁ ਜਿਨ ਕਉ ਸਿ ਨਾਮਿ ਹਰਿ ਕੈ ਲਾਗੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਤਹ ਸੁਖੁ ਹੋਆ ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਅਨਹਦ ਵਾਜੇ ॥੫॥

ਸਾਚੀ ਲਿਵੈ ਬਿਨੁ ਦੇਹ ਨਿਮਾਣੀ ॥ ਦੇਹ ਨਿਮਾਣੀ ਲਿਵੈ ਬਾਝਹੁ ਕਿਆ ਕਰੇ ਵੇਚਾਰੀਆ ॥ ਤੁਧੁ ਬਾਝੁ ਸਮਰਥ ਕੋਇ ਨਾਹੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਬਨਵਾਰੀਆ ॥ ਏਸ ਨਉ ਹੋਰੁ ਥਾਉ ਨਾਹੀ ਸਬਦਿ ਲਾਗਿ ਸਵਾਰੀਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਲਿਵੈ ਬਾਝਹੁ ਕਿਆ ਕਰੇ ਵੇਚਾਰੀਆ ॥੬॥

ਆਨੰਦੁ ਆਨੰਦੁ ਸਭੁ ਕੋ ਕਹੈ ਆਨੰਦੁ ਗੁਰੂ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ॥ ਜਾਣਿਆ ਆਨੰਦੁ ਸਦਾ ਗੁਰ ਤੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਪਿਆਰਿਆ ॥ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਿਲਵਿਖ ਕਟੇ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਸਾਰਿਆ ॥ ਅੰਦਰਹੁ ਜਿਨ ਕਾ ਮੋਹੁ ਤੁਟਾ ਤਿਨ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਚੈ ਸਵਾਰਿਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਏਹੁ ਅਨੰਦੁ ਹੈ ਆਨੰਦੁ ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ॥੭॥

ਬਾਬਾ ਜਿਸੁ ਤੂ ਦੇਹਿ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਵੈ ॥ ਪਾਵੈ ਤ ਸੋ ਜਨੁ ਦੇਹਿ ਜਿਸ ਨੋ ਹੋਰਿ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਵੇਚਾਰਿਆ ॥ ਇਕਿ ਭਰਮਿ ਭੂਲੇ ਫਿਰਹਿ ਦਹ ਦਿਸਿ ਇਕਿ ਨਾਮਿ ਲਾਗਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਨੁ ਭਇਆ ਨਿਰਮਲੁ ਜਿਨਾ ਭਾਣਾ ਭਾਵਏ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਸੁ ਦੇਹਿ ਪਿਆਰੇ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਵਏ ॥੮॥

ਆਵਹੁ ਸੰਤ ਪਿਆਰਿਹੋ ਅਕਥ ਕੀ ਕਰਹ ਕਹਾਣੀ ॥ ਕਰਹ ਕਹਾਣੀ ਅਕਥ ਕੇਰੀ ਕਿਤੁ ਦੁਆਰੈ ਪਾਈਐ ॥ ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਸਭੁ ਸਉਪਿ ਗੁਰ ਕਉ ਹੁਕਮਿ ਮੰਨਿਐ ਪਾਈਐ ॥ ਹੁਕਮੁ ਮੰਨਿਹੁ ਗੁਰੂ ਕੇਰਾ ਗਾਵਹੁ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਹੁ ਸੰਤਹੁ ਕਥਿਹੁ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੯॥

ਏ ਮਨ ਚੰਚਲਾ ਚਤੁਰਾਈ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥ ਚਤੁਰਾਈ ਨ ਪਾਇਆ ਕਿਨੈ ਤੂ ਸੁਣਿ ਮੰਨ ਮੇਰਿਆ ॥ ਏਹ ਮਾਇਆ ਮੋਹਣੀ ਜਿਨਿ ਏਤੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥ ਮਾਇਆ ਤ ਮੋਹਣੀ ਤਿਨੈ ਕੀਤੀ ਜਿਨਿ ਠਗਉਲੀ ਪਾਈਆ ॥ ਕੁਰਬਾਣੁ ਕੀਤਾ ਤਿਸੈ ਵਿਟਹੁ ਜਿਨਿ ਮੋਹੁ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਮਨ ਚੰਚਲ ਚਤੁਰਾਈ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥੧੦॥

ਏ ਮਨ ਪਿਆਰਿਆ ਤੂ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਮਾਲੇ ॥ ਏਹੁ ਕੁਟੰਬੁ ਤੂ ਜਿ ਦੇਖਦਾ ਚਲੈ ਨਾਹੀ ਤੇਰੈ ਨਾਲੇ ॥ ਸਾਥਿ ਤੇਰੈ ਚਲੈ ਨਾਹੀ ਤਿਸੁ ਨਾਲਿ ਕਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥ ਐਸਾ ਕੰਮੁ ਮੂਲੇ ਨ ਕੀਚੈ ਜਿਤੁ ਅੰਤਿ ਪਛੋਤਾਈਐ ॥ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕਾ ਉਪਦੇਸੁ ਸੁਣਿ ਤੂ ਹੋਵੈ ਤੇਰੈ ਨਾਲੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਮਨ ਪਿਆਰੇ ਤੂ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਮਾਲੇ ॥੧੧॥

ਅਗਮ ਅਗੋਚਰਾ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ ਅੰਤੋ ਨ ਪਾਇਆ ਕਿਨੈ ਤੇਰਾ ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਤੂ ਜਾਣਹੇ ॥ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਖੇਲੁ ਤੇਰਾ ਕਿਆ ਕੋ ਆਖਿ ਵਖਾਣਏ ॥ ਆਖਹਿ ਤ ਵੇਖਹਿ ਸਭੁ ਤੂਹੈ ਜਿਨਿ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਤੂ ਸਦਾ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੧੨॥

ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਖੋਜਦੇ ਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥ ਪਾਇਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕੀਨੀ ਸਚਾ ਮਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤੁਧੁ ਉਪਾਏ ਇਕਿ ਵੇਖਿ ਪਰਸਣਿ ਆਇਆ ॥ ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਚੂਕਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਭਲਾ ਭਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਤੁਠਾ ਤਿਨਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥੧੩॥

ਭਗਤਾ ਕੀ ਚਾਲ ਨਿਰਾਲੀ ॥ ਚਾਲਾ ਨਿਰਾਲੀ ਭਗਤਾਹ ਕੇਰੀ ਬਿਖਮ ਮਾਰਗਿ ਚਲਣਾ ॥ ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਤਜਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬਹੁਤੁ ਨਾਹੀ ਬੋਲਣਾ ॥ ਖੰਨਿਅਹੁ ਤਿਖੀ ਵਾਲਹੁ ਨਿਕੀ ਏਤੁ ਮਾਰਗਿ ਜਾਣਾ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨੀ ਆਪੁ ਤਜਿਆ ਹਰਿ ਵਾਸਨਾ ਸਮਾਣੀ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਚਾਲ ਭਗਤਾ ਜੁਗਹੁ ਜੁਗੁ ਨਿਰਾਲੀ ॥੧੪॥

ਜਿਉ ਤੂ ਚਲਾਇਹਿ ਤਿਵ ਚਲਹ ਸੁਆਮੀ ਹੋਰੁ ਕਿਆ ਜਾਣਾ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ॥ ਜਿਵ ਤੂ ਚਲਾਇਹਿ ਤਿਵੈ ਚਲਹ ਜਿਨਾ ਮਾਰਗਿ ਪਾਵਹੇ ॥ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਨ ਨਾਮਿ ਲਾਇਹਿ ਸਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਦਾ ਧਿਆਵਹੇ ॥ ਜਿਸ ਨੋ ਕਥਾ ਸੁਣਾਇਹਿ ਆਪਣੀ ਸਿ ਗੁਰਦੁਆਰੈ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਚੇ ਸਾਹਿਬ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਵਹੇ ॥੧੫॥

ਏਹੁ ਸੋਹਿਲਾ ਸਬਦੁ ਸੁਹਾਵਾ ॥ ਸਬਦੋ ਸੁਹਾਵਾ ਸਦਾ ਸੋਹਿਲਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੁਣਾਇਆ ॥ ਏਹੁ ਤਿਨ ਕੈ ਮੰਨਿ ਵਸਿਆ ਜਿਨ ਧੁਰਹੁ ਲਿਖਿਆ ਆਇਆ ॥ ਇਕਿ ਫਿਰਹਿ ਘਨੇਰੇ ਕਰਹਿ ਗਲਾ ਗਲੀ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਬਦੁ ਸੋਹਿਲਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੁਣਾਇਆ ॥੧੬॥

ਪਵਿਤੁ ਹੋਏ ਸੇ ਜਨਾ ਜਿਨੀ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਪਵਿਤੁ ਹੋਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ॥ ਪਵਿਤੁ ਮਾਤਾ ਪਿਤਾ ਕੁਟੰਬ ਸਹਿਤ ਸਿਉ ਪਵਿਤੁ ਸੰਗਤਿ ਸਬਾਈਆ ॥ ਕਹਦੇ ਪਵਿਤੁ ਸੁਣਦੇ ਪਵਿਤੁ ਸੇ ਪਵਿਤੁ ਜਿਨੀ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੇ ਪਵਿਤੁ ਜਿਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥੧੭॥

ਕਰਮੀ ਸਹਜੁ ਨ ਊਪਜੈ ਵਿਣੁ ਸਹਜੈ ਸਹਸਾ ਨ ਜਾਇ ॥ ਨਹ ਜਾਇ ਸਹਸਾ ਕਿਤੈ ਸੰਜਮਿ ਰਹੇ ਕਰਮ ਕਮਾਏ ॥ ਸਹਸੈ ਜੀਉ ਮਲੀਣੁ ਹੈ ਕਿਤੁ ਸੰਜਮਿ ਧੋਤਾ ਜਾਏ ॥ ਮੰਨੁ ਧੋਵਹੁ ਸਬਦਿ ਲਾਗਹੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹਹੁ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਹਜੁ ਉਪਜੈ ਇਹੁ ਸਹਸਾ ਇਵ ਜਾਇ ॥੧੮॥

ਜੀਅਹੁ ਮੈਲੇ ਬਾਹਰਹੁ ਨਿਰਮਲ ॥ ਬਾਹਰਹੁ ਨਿਰਮਲ ਜੀਅਹੁ ਤ ਮੈਲੇ ਤਿਨੀ ਜਨਮੁ ਜੂਐ ਹਾਰਿਆ ॥ ਏਹ ਤਿਸਨਾ ਵਡਾ ਰੋਗੁ ਲਗਾ ਮਰਣੁ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥ ਵੇਦਾ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਉਤਮੁ ਸੋ ਸੁਣਹਿ ਨਾਹੀ ਫਿਰਹਿ ਜਿਉ ਬੇਤਾਲਿਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨ ਸਚੁ ਤਜਿਆ ਕੂੜੇ ਲਾਗੇ ਤਿਨੀ ਜਨਮੁ ਜੂਐ ਹਾਰਿਆ ॥੧੯॥

ਜੀਅਹੁ ਨਿਰਮਲ ਬਾਹਰਹੁ ਨਿਰਮਲ ॥ ਬਾਹਰਹੁ ਤ ਨਿਰਮਲ ਜੀਅਹੁ ਨਿਰਮਲ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਕਰਣੀ ਕਮਾਣੀ ॥ ਕੂੜ ਕੀ ਸੋਇ ਪਹੁਚੈ ਨਾਹੀ ਮਨਸਾ ਸਚਿ ਸਮਾਣੀ ॥ ਜਨਮੁ ਰਤਨੁ ਜਿਨੀ ਖਟਿਆ ਭਲੇ ਸੇ ਵਣਜਾਰੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨ ਮੰਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਦਾ ਰਹਹਿ ਗੁਰ ਨਾਲੇ ॥੨੦॥

ਜੇ ਕੋ ਸਿਖੁ ਗੁਰੂ ਸੇਤੀ ਸਨਮੁਖੁ ਹੋਵੈ ॥ ਹੋਵੈ ਤ ਸਨਮੁਖੁ ਸਿਖੁ ਕੋਈ ਜੀਅਹੁ ਰਹੈ ਗੁਰ ਨਾਲੇ ॥ ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਹਿਰਦੈ ਧਿਆਏ ਅੰਤਰ ਆਤਮੈ ਸਮਾਲੇ ॥ ਆਪੁ ਛਡਿ ਸਦਾ ਰਹੈ ਪਰਣੈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਏ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਹੁ ਸੰਤਹੁ ਸੋ ਸਿਖੁ ਸਨਮੁਖੁ ਹੋਏ ॥੨੧॥

ਜੇ ਕੋ ਗੁਰ ਤੇ ਵੇਮੁਖੁ ਹੋਵੈ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਵੈ ॥ ਪਾਵੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਰ ਥੈ ਕੋਈ ਪੁਛਹੁ ਬਿਬੇਕੀਆ ਜਾਏ ॥ ਅਨੇਕ ਜੂਨੀ ਭਰਮਿ ਆਵੈ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਏ ॥ ਫਿਰਿ ਮੁਕਤਿ ਪਾਏ ਲਾਗਿ ਚਰਣੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਵੀਚਾਰਿ ਦੇਖਹੁ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਏ ॥੨੨॥

ਆਵਹੁ ਸਿਖ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੇ ਪਿਆਰਿਹੋ ਗਾਵਹੁ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥ ਬਾਣੀ ਤ ਗਾਵਹੁ ਗੁਰੂ ਕੇਰੀ ਬਾਣੀਆ ਸਿਰਿ ਬਾਣੀ ॥ ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਹਿਰਦੈ ਤਿਨਾ ਸਮਾਣੀ ॥ ਪੀਵਹੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਦਾ ਰਹਹੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਜਪਿਹੁ ਸਾਰਿਗਪਾਣੀ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਦਾ ਗਾਵਹੁ ਏਹ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥੨੩॥

ਸਤਿਗੁਰੂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕਚੀ ਹੈ ਬਾਣੀ ॥ ਬਾਣੀ ਤ ਕਚੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਬਾਝਹੁ ਹੋਰ ਕਚੀ ਬਾਣੀ ॥ ਕਹਦੇ ਕਚੇ ਸੁਣਦੇ ਕਚੇ ਕਚੀਂ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਿਤ ਕਰਹਿ ਰਸਨਾ ਕਹਿਆ ਕਛੂ ਨ ਜਾਣੀ ॥ ਚਿਤੁ ਜਿਨ ਕਾ ਹਿਰਿ ਲਇਆ ਮਾਇਆ ਬੋਲਨਿ ਪਏ ਰਵਾਣੀ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਬਾਝਹੁ ਹੋਰ ਕਚੀ ਬਾਣੀ ॥੨੪॥

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਰਤੰਨੁ ਹੈ ਹੀਰੇ ਜਿਤੁ ਜੜਾਉ ॥ ਸਬਦੁ ਰਤਨੁ ਜਿਤੁ ਮੰਨੁ ਲਾਗਾ ਏਹੁ ਹੋਆ ਸਮਾਉ ॥ ਸਬਦ ਸੇਤੀ ਮਨੁ ਮਿਲਿਆ ਸਚੈ ਲਾਇਆ ਭਾਉ ॥ ਆਪੇ ਹੀਰਾ ਰਤਨੁ ਆਪੇ ਜਿਸ ਨੋ ਦੇਇ ਬੁਝਾਇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਬਦੁ ਰਤਨੁ ਹੈ ਹੀਰਾ ਜਿਤੁ ਜੜਾਉ ॥੨੫॥

ਸਿਵ ਸਕਤਿ ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਕੈ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤਾਏ ॥ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤਾਏ ਆਪਿ ਵੇਖੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਸੈ ਬੁਝਾਏ ॥ ਤੋੜੇ ਬੰਧਨ ਹੋਵੈ ਮੁਕਤੁ ਸਬਦੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਵੈ ਏਕਸ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਆਪਿ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਹੁਕਮੁ ਬੁਝਾਏ ॥੨੬॥

ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਪੁੰਨ ਪਾਪ ਬੀਚਾਰਦੇ ਤਤੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ॥ ਤਤੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ਗੁਰੂ ਬਾਝਹੁ ਤਤੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ॥ ਤਿਹੀ ਗੁਣੀ ਸੰਸਾਰੁ ਭ੍ਰਮਿ ਸੁਤਾ ਸੁਤਿਆ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਸੇ ਜਨ ਜਾਗੇ ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਬੋਲਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੋ ਤਤੁ ਪਾਏ ਜਿਸ ਨੋ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ਜਾਗਤ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥੨੭॥

ਮਾਤਾ ਕੇ ਉਦਰ ਮਹਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਕਰੇ ਸੋ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥ ਮਨਹੁ ਕਿਉ ਵਿਸਾਰੀਐ ਏਵਡੁ ਦਾਤਾ ਜਿ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਆਹਾਰੁ ਪਹੁਚਾਵਏ ॥ ਓਸ ਨੋ ਕਿਹੁ ਪੋਹਿ ਨ ਸਕੀ ਜਿਸ ਨਉ ਆਪਣੀ ਲਿਵ ਲਾਵਏ ॥ ਆਪਣੀ ਲਿਵ ਆਪੇ ਲਾਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸਮਾਲੀਐ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਏਵਡੁ ਦਾਤਾ ਸੋ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥੨੮॥

ਜੈਸੀ ਅਗਨਿ ਉਦਰ ਮਹਿ ਤੈਸੀ ਬਾਹਰਿ ਮਾਇਆ ॥ ਮਾਇਆ ਅਗਨਿ ਸਭ ਇਕੋ ਜੇਹੀ ਕਰਤੈ ਖੇਲੁ ਰਚਾਇਆ ॥ ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਣਾ ਤਾ ਜੰਮਿਆ ਪਰਵਾਰਿ ਭਲਾ ਭਾਇਆ ॥ ਲਿਵ ਛੁੜਕੀ ਲਗੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਾਇਆ ਅਮਰੁ ਵਰਤਾਇਆ ॥ ਏਹ ਮਾਇਆ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਵਿਸਰੈ ਮੋਹੁ ਉਪਜੈ ਭਾਉ ਦੂਜਾ ਲਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨਾ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਤਿਨੀ ਵਿਚੇ ਮਾਇਆ ਪਾਇਆ ॥੨੯॥

ਹਰਿ ਆਪਿ ਅਮੁਲਕੁ ਹੈ ਮੁਲਿ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥ ਮੁਲਿ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ਕਿਸੈ ਵਿਟਹੁ ਰਹੇ ਲੋਕ ਵਿਲਲਾਇ ॥ ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤਿਸ ਨੋ ਸਿਰੁ ਸਉਪੀਐ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਜਾਇ ॥ ਜਿਸ ਦਾ ਜੀਉ ਤਿਸੁ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਹਰਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥ ਹਰਿ ਆਪਿ ਅਮੁਲਕੁ ਹੈ ਭਾਗ ਤਿਨਾ ਕੇ ਨਾਨਕਾ ਜਿਨ ਹਰਿ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥੩੦॥

ਹਰਿ ਰਾਸਿ ਮੇਰੀ ਮਨੁ ਵਣਜਾਰਾ ॥ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ਮੇਰੀ ਮਨੁ ਵਣਜਾਰਾ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਰਾਸਿ ਜਾਣੀ ॥ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਿਤ ਜਪਿਹੁ ਜੀਅਹੁ ਲਾਹਾ ਖਟਿਹੁ ਦਿਹਾੜੀ ॥ ਏਹੁ ਧਨੁ ਤਿਨਾ ਮਿਲਿਆ ਜਿਨ ਹਰਿ ਆਪੇ ਭਾਣਾ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ਮੇਰੀ ਮਨੁ ਹੋਆ ਵਣਜਾਰਾ ॥੩੧॥

ਏ ਰਸਨਾ ਤੂ ਅਨ ਰਸਿ ਰਾਚਿ ਰਹੀ ਤੇਰੀ ਪਿਆਸ ਨ ਜਾਇ ॥ ਪਿਆਸ ਨ ਜਾਇ ਹੋਰਤੁ ਕਿਤੈ ਜਿਚਰੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਲੈ ਨ ਪਾਇ ॥ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇ ਪਲੈ ਪੀਐ ਹਰਿ ਰਸੁ ਬਹੁੜਿ ਨ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥ ਏਹੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਕਰਮੀ ਪਾਈਐ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਜਿਸੁ ਆਇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਹੋਰਿ ਅਨ ਰਸ ਸਭਿ ਵੀਸਰੇ ਜਾ ਹਰਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੩੨॥

ਏ ਸਰੀਰਾ ਮੇਰਿਆ ਹਰਿ ਤੁਮ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਰਖੀ ਤਾ ਤੂ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥ ਹਰਿ ਜੋਤਿ ਰਖੀ ਤੁਧੁ ਵਿਚਿ ਤਾ ਤੂ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥ ਹਰਿ ਆਪੇ ਮਾਤਾ ਆਪੇ ਪਿਤਾ ਜਿਨਿ ਜੀਉ ਉਪਾਇ ਜਗਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝਿਆ ਤਾ ਚਲਤੁ ਹੋਆ ਚਲਤੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਾ ਮੂਲੁ ਰਚਿਆ ਜੋਤਿ ਰਾਖੀ ਤਾ ਤੂ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥੩੩॥

ਮਨਿ ਚਾਉ ਭਇਆ ਪ੍ਰਭ ਆਗਮੁ ਸੁਣਿਆ ॥ ਹਰਿ ਮੰਗਲੁ ਗਾਉ ਸਖੀ ਗ੍ਰਿਹੁ ਮੰਦਰੁ ਬਣਿਆ ॥ ਹਰਿ ਗਾਉ ਮੰਗਲੁ ਨਿਤ ਸਖੀਏ ਸੋਗੁ ਦੂਖੁ ਨ ਵਿਆਪਏ ॥ ਗੁਰ ਚਰਨ ਲਾਗੇ ਦਿਨ ਸਭਾਗੇ ਆਪਣਾ ਪਿਰੁ ਜਾਪਏ ॥ ਅਨਹਤ ਬਾਣੀ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਜਾਣੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਭੋਗੋ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ਮਿਲਿਆ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਜੋਗੋ ॥੩੪॥

ਏ ਸਰੀਰਾ ਮੇਰਿਆ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇ ਕੈ ਕਿਆ ਤੁਧੁ ਕਰਮ ਕਮਾਇਆ ॥ ਕਿ ਕਰਮ ਕਮਾਇਆ ਤੁਧੁ ਸਰੀਰਾ ਜਾ ਤੂ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਤੇਰਾ ਰਚਨੁ ਰਚਿਆ ਸੋ ਹਰਿ ਮਨਿ ਨ ਵਸਾਇਆ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਿਆ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਏਹੁ ਸਰੀਰੁ ਪਰਵਾਣੁ ਹੋਆ ਜਿਨਿ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥੩੫॥

ਏ ਨੇਤ੍ਰਹੁ ਮੇਰਿਹੋ ਹਰਿ ਤੁਮ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਧਰੀ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੇਖਹੁ ਕੋਈ ॥ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੇਖਹੁ ਕੋਈ ਨਦਰੀ ਹਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥ ਏਹੁ ਵਿਸੁ ਸੰਸਾਰੁ ਤੁਮ ਦੇਖਦੇ ਏਹੁ ਹਰਿ ਕਾ ਰੂਪੁ ਹੈ ਹਰਿ ਰੂਪੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝਿਆ ਜਾ ਵੇਖਾ ਹਰਿ ਇਕੁ ਹੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਏਹਿ ਨੇਤ੍ਰ ਅੰਧ ਸੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਦਿਬ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਹੋਈ ॥੩੬॥

ਏ ਸ੍ਰਵਣਹੁ ਮੇਰਿਹੋ ਸਾਚੈ ਸੁਨਣੈ ਨੋ ਪਠਾਏ ॥ ਸਾਚੈ ਸੁਨਣੈ ਨੋ ਪਠਾਏ ਸਰੀਰਿ ਲਾਏ ਸੁਣਹੁ ਸਤਿ ਬਾਣੀ ॥ ਜਿਤੁ ਸੁਣੀ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਆ ਰਸਨਾ ਰਸਿ ਸਮਾਣੀ ॥ ਸਚੁ ਅਲਖ ਵਿਡਾਣੀ ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਏ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸੁਣਹੁ ਪਵਿਤ੍ਰ ਹੋਵਹੁ ਸਾਚੈ ਸੁਨਣੈ ਨੋ ਪਠਾਏ ॥੩੭॥

ਹਰਿ ਜੀਉ ਗੁਫਾ ਅੰਦਰਿ ਰਖਿ ਕੈ ਵਾਜਾ ਪਵਣੁ ਵਜਾਇਆ ॥ ਵਜਾਇਆ ਵਾਜਾ ਪਉਣ ਨਉ ਦੁਆਰੇ ਪਰਗਟੁ ਕੀਏ ਦਸਵਾ ਗੁਪਤੁ ਰਖਾਇਆ ॥ ਗੁਰਦੁਆਰੈ ਲਾਇ ਭਾਵਨੀ ਇਕਨਾ ਦਸਵਾ ਦੁਆਰੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ ਤਹ ਅਨੇਕ ਰੂਪ ਨਾਉ ਨਵ ਨਿਧਿ ਤਿਸ ਦਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਈ ਪਾਇਆ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਪਿਆਰੈ ਜੀਉ ਗੁਫਾ ਅੰਦਰਿ ਰਖਿ ਕੈ ਵਾਜਾ ਪਵਣੁ ਵਜਾਇਆ ॥੩੮॥

ਏਹੁ ਸਾਚਾ ਸੋਹਿਲਾ ਸਾਚੈ ਘਰਿ ਗਾਵਹੁ ॥ ਗਾਵਹੁ ਤ ਸੋਹਿਲਾ ਘਰਿ ਸਾਚੈ ਜਿਥੈ ਸਦਾ ਸਚੁ ਧਿਆਵਹੇ ॥ ਸਚੋ ਧਿਆਵਹਿ ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨਾ ਬੁਝਾਵਹੇ ॥ ਇਹੁ ਸਚੁ ਸਭਨਾ ਕਾ ਖਸਮੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਬਖਸੇ ਸੋ ਜਨੁ ਪਾਵਹੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਚੁ ਸੋਹਿਲਾ ਸਚੈ ਘਰਿ ਗਾਵਹੇ ॥੩੯॥

ਅਨਦੁ ਸੁਣਹੁ ਵਡਭਾਗੀਹੋ ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੇ ॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਉਤਰੇ ਸਗਲ ਵਿਸੂਰੇ ॥ ਦੂਖ ਰੋਗ ਸੰਤਾਪ ਉਤਰੇ ਸੁਣੀ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥ ਸੰਤ ਸਾਜਨ ਭਏ ਸਰਸੇ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਣੀ ॥ ਸੁਣਤੇ ਪੁਨੀਤ ਕਹਤੇ ਪਵਿਤੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥ ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਚਰਣ ਲਾਗੇ ਵਾਜੇ ਅਨਹਦ ਤੂਰੇ ॥੪੦॥੧॥

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